Lucknow Mail (लखनऊ मेल) by Ajoy Dasgupta
"चलो आखिर पहुंच ही गए नई दिल्ली स्टेशन। बाप रे, क्या ट्राफिक था आज। हम तो उम्मीद छोड़ चुके थे।" "अच्छा सुनो किसी ने ठीक से चेक किया कि लखनऊ मेल नई-दिल्ली से ही जाती है कि नहीं? याद है एक बार आपने ......" "अरे, अब चुप भी हो जाओ। क्या बीस साल पुरानी कहानी ले कर बैठ गयीं। हां, यहीं से चलती है लखनऊ मेल।" "कुली,कुली होगा साहेब? लखनऊ मेल पकड़ना है क्या? सौ रपये लगेंगे!" "क्या? सौ रुपये? सौ रुपए किस बात के भाई? क्या हम पहली बार लखनऊ जा रहै हैं? हर साल जाते हैं, कभी कभी दो तीन बार, एक बार तो...." "अरे चाचाजी, जल्दी कीजिए, कुली तय कीजिए वर्ना ट्रेन छूट जाएगी। याद है दो साल पहले क्या हुआ था हरदोई वाली बुआ के साथ? इटावा स्टेशन मे ही छूट गयीं थीं। " "साहब, सामान ज्यादा है और आपका सेकंड क्लास डिब्बा एकदम पीछे लगता है।" "तुम्हें कैसे पता हम सेकंड क्लास पैसेंजर हैं? ज्यादा चालाक बनते हो?" "चाचा जल्दी कीजिए, जल्दी। टाइम नहीं है अब। हमारा कोच सच मुच एकदम पीछे की तरफ है। हम gents लोग तो किसी तरह तेज़ तेज़ चल कर पहुं...